लोकमाता अहिल्याबाई होलकर बाल्य काल से आध्यात्मिक और सेवा भाव रहा।
लोरमी 26 अक्टूबर 2024
अहिल्याबाई से लोकमाता मातोश्री प्रजावत्सला बनने के पीछे बाल्य काल से संस्कारों का बीजारोपण रहा है। अपने माता-पिता के शिव आराधना को अपनाकर भक्ति भाव में लीन रहती। जब सभी बच्चे खिलौना खेलने,गुड़िया गुड्डी खेलने, चौका, बेलना, चूल्हा खाने बनाने सिखाती तो वही अहिल्याबाई मिट्टी से महल बनाना, किला बनाना और हाथी घोड़ा तलवार बनाना बनाकर पूत पांव पालने में है इसका संकेत देती रही है. कम उम्र में शादी होने के बावजूद भी सभी प्रकार के युद्ध कौशल राजनीति घुड़सवारी और राजपाठ चलाने का गुण अपने ससुर मल्हार राव जी से सीख रही थी। महिलाओं के उद्धार के लिए दहेज प्रथा विधवा विवाह प्रारंभ और सती प्रथा को बंद किया। मातृशक्ति के शिक्षा के लिए भी प्रबंध किए। छुआछूत जाति पाति उच्च नीच के भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया गया सभी मनुष्य समान है भगवान सभी के लिए है।